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Showing posts from September, 2019

साहित्य मदिरा

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इन घड़ियों को ना व्यर्थ करो वरना मदिरा ना पाओगे। हर शहरों में बंद हो रही बिन मदिरा मर जाओगे। सुमन गंध में खींचे चलो तुम काले औ मतवाले भंवरे। अम्बर में भी प्याला लेकर घूमो बन बादल चितकबरे। लुप्त हो रही है ये मदिरा इन अंग्रेजी चक्कर में जहां खुली मधुशाला पाओ खूब पियो तुम प्यारे भंवरे। एक बार गर झांक लिए तुम घुसे वहीं रह जाओगे। इन घड़ियों को ना व्यर्थ करो वरना मदिरा ना पाओगे।१। अंधकार की निशा मिटा कर प्राची की किरणें लाती है। एक बार जो पान किया याद बनी रह जाती है। तीर चलाओ तुम मदिरा का लक्ष्य जहां है रहने दो एक अनोखा ढंग मदिरा का तीरों को लक्ष्य बुलाती है। बस एक बार हिय में उतरे फिर जन जन तक पहुंचाओगे। इन घड़ियों को ना व्यर्थ करो वरना मदिरा ना पाओगे।२। छूत हीन औ जूठ हीन साहित्य कि पावन मदिरा है। आंसू से निकली है प्रसाद के दिनकर की सावन मदिरा है। रूप हीन औ गंध हीन भाव रूप से भरी हुई तुलसी की राम कथा देखो भाव - भाव में मदिरा है। मेरे लेखनि के स्याही में हर बूंद में मदिरा पाओगे। इन घड़ियों को ना व्यर्थ करो वरना मदिरा ना पाओगे।३। आसमान से झां...

निदाई में पनपा प्यार

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*_______________________________________* खेतों में चल रही निदाई कि निगरानी के लिए हमें घर से दोपहर 11 के आस पास बजे खेदा गया आज एक अद्वितीय प्रेमी से भेट होगी हमने यह सोचा भी नहीं । घर से 5 सेर पानी और आधा सेर गुड़ लेकर चला और नदी पार खेतों तक पहुच कर  निंदाई कर रही मजदूरनी को पानी और गुड़ थमाया फिर निंदाई से उखड़े खरपतवार उठा- उठा कर मेड़ पर रखने लगा मेघों कि कृपा विशेष रही उनके रिमझिम करने से काम में थकान नहीं हो रही । लगभग आधे घंटे के बाद कुछ खेतों आगे एक कृष्णवरण का जवान युवक लगभग 7-8 माह के बच्चे को सिर पर बिठाकर कुछ गीत गुनगुनाते हुए सीधे आ रहा । मैने पास निंदाई कर रही औरतों से उसके बार में पुछा तो एक अधेड़ औरत बोली मेरा लडका है और इसका पति(बगल खड़ी औरत को छू कर)। मैं झुक कर अपने काम में बारिश कि बूदें थोड़ी तेजी से और व्यक्ति छाता लगाकर खेत तक अलौकिक प्रेम का दर्शन आरम्भ युवक बच्चे को पुचकारते हुए अपनी औरत को प्यार के बोलता है। 'अले लल्ली कि माँ आओ बेतू को दुध्धू पिला दो' सुनते ही युवती फट से उठी और धान के पौधों को रौदते चल पडी। ओए सभल कर चल कहकर मैं फिर अपने काम मे...

देखो सखी मधुवर्षण हो रही

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अंबर में मेघों को देखो लिए हाथ में प्याले हैं। रवि,शशि दोनों दिखते छिपते सब पी कर मतवाले हैं। सभी देव पीकर लड़खाते देखो कैसी गर्जन हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। अंबर में ज्यों लुढ़का प्याला तरु पतिका से मदिरा टपके। वर्षों से आश लगाऐ बैठा प्यासा चातक रस को झपके। उसी रसो में डूबी लतिका हरी भरी आकर्षक हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। रवि के ताप से तपती वसुधा हिमरस पाते प्रमुदित हो गई। तिमिर गेह में पडीं जो बीजें मधुरस पाते हर्षित हो गई। पी कर खड़े हुए नवतरु नशे में डाली चरमर हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। हुआ आगमन निज प्रियतम का एक बूंद अधरों में पड़ गई। कौन प्रियतमा किसकी प्रियतम नशे में जाने क्या-क्या कह गई। नशे में नैन हुए अंगूरी काम में वो तो शंकर हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। रूप अप्सरा चली गई फिर पूर्ण रूप से गलगल हो कर। वसुधा का आंचल फिर देखा दादुर बोले गदगद हो कर। किसी का प्याला चटका नभ पर देखो कैसी लपकन हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। इन मेघों में न जाने कितना मदिरा भरा हुआ है। हिमशिखरों से हिम भी लाते जो मदिरा में ...