देखो सखी मधुवर्षण हो रही

अंबर में मेघों को देखो
लिए हाथ में प्याले हैं।
रवि,शशि दोनों दिखते छिपते
सब पी कर मतवाले हैं।

सभी देव पीकर लड़खाते
देखो कैसी गर्जन हो रही।
देखो सखी मधुवर्षण हो रही।

अंबर में ज्यों लुढ़का प्याला
तरु पतिका से मदिरा टपके।
वर्षों से आश लगाऐ बैठा
प्यासा चातक रस को झपके।

उसी रसो में डूबी लतिका
हरी भरी आकर्षक हो रही।
देखो सखी मधुवर्षण हो रही।

रवि के ताप से तपती वसुधा
हिमरस पाते प्रमुदित हो गई।
तिमिर गेह में पडीं जो बीजें
मधुरस पाते हर्षित हो गई।

पी कर खड़े हुए नवतरु
नशे में डाली चरमर हो रही।
देखो सखी मधुवर्षण हो रही।

हुआ आगमन निज प्रियतम का
एक बूंद अधरों में पड़ गई।
कौन प्रियतमा किसकी प्रियतम
नशे में जाने क्या-क्या कह गई।

नशे में नैन हुए अंगूरी
काम में वो तो शंकर हो रही।
देखो सखी मधुवर्षण हो रही।

रूप अप्सरा चली गई फिर
पूर्ण रूप से गलगल हो कर।
वसुधा का आंचल फिर देखा
दादुर बोले गदगद हो कर।

किसी का प्याला चटका नभ पर
देखो कैसी लपकन हो रही।
देखो सखी मधुवर्षण हो रही।

इन मेघों में न जाने
कितना मदिरा भरा हुआ है।
हिमशिखरों से हिम भी लाते
जो मदिरा में पड़ा हुआ है।

देहगुहा में भर लो रसना
अबकी अद्भुत वर्षण हो रही।
देखो सखी मधुवर्षण हो रही।

निशा निशा में पीती ही थी
आज उषा में आई है।
तिमिर उषा में मानों ऐसे
निशा निशा ही छाई है।

निशा उषा सब साथ मे पीते
जाने कैसे दर्शन हो रही।
देखो सखी मधुवर्षण हो रही।
*_प्रिन्शु लोकेश*

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