साहित्य मदिरा
इन घड़ियों को ना व्यर्थ करो
वरना मदिरा ना पाओगे।
हर शहरों में बंद हो रही
बिन मदिरा मर जाओगे।
सुमन गंध में खींचे चलो तुम
काले औ मतवाले भंवरे।
अम्बर में भी प्याला लेकर
घूमो बन बादल चितकबरे।
लुप्त हो रही है ये मदिरा
इन अंग्रेजी चक्कर में
जहां खुली मधुशाला पाओ
खूब पियो तुम प्यारे भंवरे।
एक बार गर झांक लिए
तुम घुसे वहीं रह जाओगे।
इन घड़ियों को ना व्यर्थ करो
वरना मदिरा ना पाओगे।१।
अंधकार की निशा मिटा कर
प्राची की किरणें लाती है।
एक बार जो पान किया
याद बनी रह जाती है।
तीर चलाओ तुम मदिरा का
लक्ष्य जहां है रहने दो
एक अनोखा ढंग मदिरा का
तीरों को लक्ष्य बुलाती है।
बस एक बार हिय में उतरे
फिर जन जन तक पहुंचाओगे।
इन घड़ियों को ना व्यर्थ करो
वरना मदिरा ना पाओगे।२।
छूत हीन औ जूठ हीन
साहित्य कि पावन मदिरा है।
आंसू से निकली है प्रसाद के
दिनकर की सावन मदिरा है।
रूप हीन औ गंध हीन
भाव रूप से भरी हुई
तुलसी की राम कथा देखो
भाव - भाव में मदिरा है।
मेरे लेखनि के स्याही में
हर बूंद में मदिरा पाओगे।
इन घड़ियों को ना व्यर्थ करो
वरना मदिरा ना पाओगे।३।
आसमान से झांक रहा वो
मदिरा की बीज लगाने वाला।
सौंप दिए जिसको हम प्याला
जाग रहा क्या वो रखवाला।
मैं एकाकी बचा पहरूआ
हे पुरखों इस मदिरा की
न जाने किस रस में डूबे
जिनको तूने था पाला।
हो तुम इस मदिरा के पाले
छोड़ इसे क्यों जाओगे।
इन घड़ियों को ना व्यर्थ करो
वरना मदिरा ना पाओगे।४।
साहित्य नाम की ये मदिरा
बड़ी अनोखी होती है।
गीतों में मीठी -मीठी सी
व्यंग्यों में तीखी होती है।
आओ सब मिल पान करें
दूर इसे न जाने दें
ये ऐसी है सोन चिरैया
जो कभी ना खोखी होती है।
किये अनादर जो मदिरा का
जीवन भर पछताओगे।
इन घड़ियों को ना व्यर्थ करो
वरना मदिरा ना पाओगे।५।
*_प्रिन्शु लोकेश तिवारी*
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