काश मैं एक मटका होता.



काश मैं एक मटका होता।
किसी गोरी कमर मे लटका होता।
वो जाती हमें लिए पनघट तक
फिर सहजता से जल मे पटका होता।
                            काश मैं एक मटका होता..
वो लिए हमें फिर घर को चलती।
मैं मुग्द होता देख,कमर हलती।
चलते चलते वो पत्थर से टकरा जाती
काश उसका पैर थोड़ा सा चटका होता।
                            काश मैं एक मटका होता..
वो रुक कर वही बैठ जाती।
वही पास मटका सहलाती।
पहुचने मे उसे हो जाती देर
काश उसकी मम्मी उसे डपटा होता।
                            काश मैं एक मटका होता..
डपट सुन के वो मम्मी की रो पडती।
उसी समय आँसू की बूदें मटके मे पडती।
उन बूदो को उसकी मम्मी देख लेती
काश फिर पनघट भेजने को मन खटका होता।
                             काश मैं एक मटका होता..
फिर से लेकर हमें वो चलती।
खाली मटका कमर जो हलती।
पवन देव ने हवा चलाइ
काश झुरमुट मे पल्लू अटका होता।
                              काश मैं एक मटका होता..
फस जाती वो गोरी प्यारी।
रुदन करने लगती बेचारी।
फिर मैं मटके से बाहर आता
काश पकड के पल्लू झटका होता।
                              काश मैं एक मटका होता..
वो पूछ लेती तुम हो कौन।
मैं बन जाता मटका मौन।
समझ जाती, ये मटका मेरा
काश इसे मैं पटका होता।
                            काश मैं एक मटका होता..

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