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विश्व के महामारी /शिव बंदना

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विश्व के महामारी /शिव बंदना नगर मा महेश के महामारी विकसित बासी नरनारि बहुतए भयभीत हैं। छिकरत खहरात हहरात मरि जात कौनो बैद अब तक ऐसे नहीं जीत है। भूमिचोर भूमिपाल भूलि गए हाल-चाल देश मा तेज से बढ़ गए पाप रीत हैं। महादेव भोरेनाथ भवत भवानीनाथ तेरो हि सहारो सब जंग जग जीत है।    __________ २.___________ ठाकुर महेश जहां गनपति- सेनापति हाल बेहाल नहि होत ओह शहर की। भूतनाथ दीनानाथ गौरीनाथ जहां बसे मारन कि शक्ति छिन जाति है जहर की लोकरीति राखि-नाथ महामारी दूर करौ नष्ट करो रोग सिन्धु पापनी ठहर की। आए दिन एक-एक जाए रहे यमपुरी बीज ही को नष्ट करो प्रभु ऐसो फर की। ___________३.____________ उमा जुके भरतार हर-तार देश कष्ट मंगल के दाता दास देशबासी तेरो हैं। बढत-दुखारि बाल-वृध्द परेशान सब गिरिनाथ  गौरीनाथ  हम सब चेरो हैं। घर को कंगाल कर मालिक करेगा क्या हे भूमिपाल  तेरो हम  ही  सब ढेरो हैं। रोष को बिसारि करि क्षमाकर दीनानाथ सुनि रखो नाम आशुतोष नाथ तेरो हैं। *प्रिन्शु लोकेश*

मुख्य उद्देश्य मंहगाई का

💥'मुख्य उद्देश्य मंहगाई का'💥  (विधा:- व्यंग्य)   *लेखक:-प्रिन्शु लोकेश* पहली बात तो सरकार ने देश को सनातनी देश बनाने हेतु प्याज़ का दाम बढाया और साथ ही राष्ट्र में उद्योगपतियों के कारखानों से कहीं ज्यादा मोटर- वाहनों से पर्यावरण दूषित हो रहा है, अत: पेट्रोल और डीजल के दामो में बढोतरी करके स्वच्छ भारत कि पहल चालू की है। जहां तक बात रही विकास की तो विकास हुआ कहाँ नहीं , आइए ये देखिए झरने और तलाबों को दर्शनिक स्थल बना कर और उसी के जैसे शुध्द पानी को बाॅटल मे कैद कर  देश कि अर्थव्यवस्था भी सुधरी जा रही है और झरने जैसा पानी घर में भी उपलब्ध! खैर छोड़ो चलो मंहगाई कि वजह देखे। सुना है बैगन, सेमी, मसूर, मूंग ये सब मंहगे हो गए। हमारे हिसाब से तो इसमें पक्का चिकित्सा मंत्री जी का हाथ है क्योंकि बैगन, सेमी, मसूर, मूंग ये सब बातिल होते है और मंत्री जी का मिशन है हमारे देश में कोई व्यक्ति रोग से न मरे भूख से भले मर जाए। वाह! मंत्री जी अब आप जरूर अपने मिशम से सफलता हासिल करेगा। मंत्री जी किसी डाक्टर से सुना कि डाक्टर किसी रोगी से कह रहा है कि तुम केवल अब फल खाना और ये सुन कर तो मं

साहित्य मदिरा

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इन घड़ियों को ना व्यर्थ करो वरना मदिरा ना पाओगे। हर शहरों में बंद हो रही बिन मदिरा मर जाओगे। सुमन गंध में खींचे चलो तुम काले औ मतवाले भंवरे। अम्बर में भी प्याला लेकर घूमो बन बादल चितकबरे। लुप्त हो रही है ये मदिरा इन अंग्रेजी चक्कर में जहां खुली मधुशाला पाओ खूब पियो तुम प्यारे भंवरे। एक बार गर झांक लिए तुम घुसे वहीं रह जाओगे। इन घड़ियों को ना व्यर्थ करो वरना मदिरा ना पाओगे।१। अंधकार की निशा मिटा कर प्राची की किरणें लाती है। एक बार जो पान किया याद बनी रह जाती है। तीर चलाओ तुम मदिरा का लक्ष्य जहां है रहने दो एक अनोखा ढंग मदिरा का तीरों को लक्ष्य बुलाती है। बस एक बार हिय में उतरे फिर जन जन तक पहुंचाओगे। इन घड़ियों को ना व्यर्थ करो वरना मदिरा ना पाओगे।२। छूत हीन औ जूठ हीन साहित्य कि पावन मदिरा है। आंसू से निकली है प्रसाद के दिनकर की सावन मदिरा है। रूप हीन औ गंध हीन भाव रूप से भरी हुई तुलसी की राम कथा देखो भाव - भाव में मदिरा है। मेरे लेखनि के स्याही में हर बूंद में मदिरा पाओगे। इन घड़ियों को ना व्यर्थ करो वरना मदिरा ना पाओगे।३। आसमान से झां

निदाई में पनपा प्यार

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*_______________________________________* खेतों में चल रही निदाई कि निगरानी के लिए हमें घर से दोपहर 11 के आस पास बजे खेदा गया आज एक अद्वितीय प्रेमी से भेट होगी हमने यह सोचा भी नहीं । घर से 5 सेर पानी और आधा सेर गुड़ लेकर चला और नदी पार खेतों तक पहुच कर  निंदाई कर रही मजदूरनी को पानी और गुड़ थमाया फिर निंदाई से उखड़े खरपतवार उठा- उठा कर मेड़ पर रखने लगा मेघों कि कृपा विशेष रही उनके रिमझिम करने से काम में थकान नहीं हो रही । लगभग आधे घंटे के बाद कुछ खेतों आगे एक कृष्णवरण का जवान युवक लगभग 7-8 माह के बच्चे को सिर पर बिठाकर कुछ गीत गुनगुनाते हुए सीधे आ रहा । मैने पास निंदाई कर रही औरतों से उसके बार में पुछा तो एक अधेड़ औरत बोली मेरा लडका है और इसका पति(बगल खड़ी औरत को छू कर)। मैं झुक कर अपने काम में बारिश कि बूदें थोड़ी तेजी से और व्यक्ति छाता लगाकर खेत तक अलौकिक प्रेम का दर्शन आरम्भ युवक बच्चे को पुचकारते हुए अपनी औरत को प्यार के बोलता है। 'अले लल्ली कि माँ आओ बेतू को दुध्धू पिला दो' सुनते ही युवती फट से उठी और धान के पौधों को रौदते चल पडी। ओए सभल कर चल कहकर मैं फिर अपने काम मे

देखो सखी मधुवर्षण हो रही

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अंबर में मेघों को देखो लिए हाथ में प्याले हैं। रवि,शशि दोनों दिखते छिपते सब पी कर मतवाले हैं। सभी देव पीकर लड़खाते देखो कैसी गर्जन हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। अंबर में ज्यों लुढ़का प्याला तरु पतिका से मदिरा टपके। वर्षों से आश लगाऐ बैठा प्यासा चातक रस को झपके। उसी रसो में डूबी लतिका हरी भरी आकर्षक हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। रवि के ताप से तपती वसुधा हिमरस पाते प्रमुदित हो गई। तिमिर गेह में पडीं जो बीजें मधुरस पाते हर्षित हो गई। पी कर खड़े हुए नवतरु नशे में डाली चरमर हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। हुआ आगमन निज प्रियतम का एक बूंद अधरों में पड़ गई। कौन प्रियतमा किसकी प्रियतम नशे में जाने क्या-क्या कह गई। नशे में नैन हुए अंगूरी काम में वो तो शंकर हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। रूप अप्सरा चली गई फिर पूर्ण रूप से गलगल हो कर। वसुधा का आंचल फिर देखा दादुर बोले गदगद हो कर। किसी का प्याला चटका नभ पर देखो कैसी लपकन हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। इन मेघों में न जाने कितना मदिरा भरा हुआ है। हिमशिखरों से हिम भी लाते जो मदिरा में

झूठ औं सच आधे आधे

सरला ने आवाज लगाई मालिक बचाओ। मालिक ने कहा तुम दौड़ कर मेरे पास आओ। मैं उससे छीन कर तुम्हारी इज्जत खुद ले लूगाँ। अच्छे पत्रकार के सामने फिर तुम्हें वापस दे दूगां। और अखबार मे आते ही हम भी चुनाव के लायक हो जाएंगे। इस पंचवर्षी न सही उस पंचवर्षी पक्का विधायक हो जाएंगे। फिर मस्जिद मे अल्ला औं मंदिर में राधे राधे। नेता होने पे बोलेगें झूठ औं सच आधे आधे। सरला ने फिर एक अंधे को आवाज लगाई। आ मुझे बचा ले मेरे प्यारे अंधे भाई। अंधा बचाने को पहुँचा उसका खून हो गया। वहीं अंधा अगले जन्म में कानून हो गया। कानून भी पुरानी चोट कि वजह से सच नहीं कहता। अंधा कानून इसीलिए किसी का हक नहीं कहता। अब वकीलो के भी पता नहीं क्या इरादे-उरादे। कोर्ट पहुचने से पहले ही झूठ औं सच आधे आधे। सरला तीसरी आवाज में खुदा को पुकारा। अंबर से मेघों ने लगा कि थोड़ा स्वीकारा। किन्तु वो आवाज बादल के गरजने की थी। खुदा सुनता है बस ये बात कहने की थी। फिर थक कर सरला खुद नग्न होने लगी। यह देख क्रूर की क्रूरता भी रोने लगी। क्रूर बोला अब हम ही बदल देते है इरादे। झूठ तो झूठ है सच मे भी झूठ औं सच आधे आधे।

मेरे गांव आई रोड़(बघेली कविता)

हमरे गांव के सुन लें हाल हर घर मा एक नोकर। रोड़ नहीं रही अब तक मनईं रहे की जोकर।। हम ता तब लडिकबा रहेन का बताई भइआ। अउ घरे मा रही नहीं एकैउ ठे दुइपहिया।। एठ्ठे टुटही रही तै सइकिल ओहिन का हम रपटी। रोड़मा तुहरओ फसी जमीन कहै जे ओका डपटी।। एक जन का फेर रोड़ के अहिमक चढ़ा जुनून। कहिन रोड़ता अंदर आएके मानी भलेहोए फेर खून।। रोड़के नशामा ऊँकुछ गलतकाम तक कीन्हिन। कुछके दीवारका टोरिन कुछन का धमकी दिन्हिन।। युवाटीम जब मिलके उनका घंटनतक समझाइस। सबके सहमत मिलके भइआ रोड़ गांव आपाइस।। रोड़मा काम लागहै भइआ अहिमक खुसीहै छाई। एंह गांव के वासी अब मरतए सरगा पाई।।          "Prinshu Lokesh"