आधुनिकता मे खोता बचपन

*आधुनिकता मे खोता बचपन*

हम भूल गए उस बचपन को
जब कागज की नाव बनाते थे।
बारिश के मौसम में हम सब
अपनी नाव बहाते थे ।१।

अब लिए मोबाइल गलियों में
पागल की भांति फिरते हैं ।
आधुनिकता के गड्ढे में अब
ठोकर खा के गिरते हैं ।२।

हम भूल गए उस बचपन को
जब मिल के रोटी खाते थे।
स्कूलों में मैडम जी को
अच्छे अच्छे गीत सुनाते थे।३।

नए जमाने में हम सब
अब मैगी इटली खाते है।
लिए मोबाइल जेबों मे
बस हनी सिंह ही गाते हैं।४।

बचपन में हम लोगों की
होती छोटी कश्ती थी।
देख हमारे इन कर्मों को
मेरी मम्मी हँसती थी।५।

नये जमाने के चक्कर मे
डूब गई वो मेरी कश्ती।
व्हॉट्सएप के चुटकुलों में
अब तो पूरी दुनिया हंसती।६।

बचपन में वो मेरी मम्मी
हमको प्रिन्शु लल्ला कहती थी।
प्यार भरी थोड़ी बातों में
फिर दोनों की आँखें बहती थी।७।

नए जमाने के कारण अब
लोकेश बना अब फिरता हूँ।
उसी प्यार की बोली में अब
फट से जबाब दे देता हूँ।८।

बचपन की एक बात निराली
मित्र होते सब पक्के।
लड़के हो या लड़कि हो
होते थे दिल के सच्चे।९।

आज-काल के परिवेशों में
मित्र कहाँ वो मित्र रहे।
न ही उनमें प्रेम भाव है
हम तो जढ़ के जड़ ही रहे।१०।

इसीलिए कहता हूँ प्यारे
बचपन जैसा भाव रखो।
आधुनिकता को गोली मारो
प्रेम सभी से सामान रखो।११।

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