यही पे डारूं डेरे
यही पे डारूं डेरे **************** मैं विन्ध्य क्षेत्र का वासी हूँ, ब्रज नगरी भी आता हूँ तेरे। देख के तेरे ठाट- बाट को जी करता यही पे डारूं डेरे। कुंठाओं के चक्कर में भटकन से अच्छा होता है। तेरे चरणों की लगा के तकिया जो प्रेम भाव से सोता है।। दे दे अब हमें शरण वो प्यारा हो जावे मेरे वारे न्यारे। देख के तेरे ठाट- बाट को जी करता यही पे डारूं डेरे।। तेरी श्याम वरण की वो पीत झगुलिया भाती है। अंबर मे बिजली की चिग्गार दिखाई देती है। खुद मे मुझे पिछा ले प्यारे हो जाए हम तेरे- मेरे। देख के तेरे ठाट- बाट को जी करता यही पे डारूं डेरे। कभी कभी लिख जाता हूँ तेरा ही वियोग श्रृंगार मे। कभी कभी कह जाता हूँ विसद प्रेम अनुराग मे। नाथ के नाथ नाथ हो प्यारे हम तो केवल है एक चेरे। देख के तेरे ठाट- बाट को जी करता यही पे डारूं डेरे।। भक्ती के बदले कुछ नहीं देना नहीं तो रोजगारी हो जाऊँगा। भक्ती करके मुक्ती लेली तो एक व्यापारी कहलाऊगा। मैं विन्ध्य क्षेत्र का वासी हूँ, ब्रज नगरी भी आता हूँ तेरे। देख के तेरे ठाट- बाट को जी करता यही पे डारूं डेरे। writerlokesh.blogspot....