२९/०९/२०१७ की सुबह
जैसे उठा सुबह सुबह जन्नत सी मिल गई।
अंगना मे आ के देखा मम्मी जी दिख गई।१।
फिर चल दिया टहलने को,
बगिया भी खिल गई।
चारो मे ओस की बूदो को जब देखा,
ऐसे लगा जैसे मोती ही मिल गई।२।
फिर घर से दूर जा बैठे एक शिला पर,
वही एक झुरमुट मे तितलियां भी दिख गई।
कुछ देर तक देखता रहा उन्हें,
कुछ ही देर मे सारी तितलियां भी उड़ गई।३।
फिर कुछ देर मे घर को चल दिया,
रास्ते मे देखा की कुछ मोती भी झड़ गई।
पहुँच गया एक नदी तट पर,
वहाँ भी कुछ मछलियाँ नजर लग गई।४।
झुक धुलने लगा जब हाथ - पैर,
सूर्य की किरणें भी दिख गई।
सूर्य की करणों को देखकर,
वहाँ वशुधा तो दुलहन सी सज गई।५।
फिर आगया मैं घर पर,
फिर से जन्नत मिल गई।
क्योंकि घर के अंगना पर ,
मेरी मम्मी जो दिख गई।६।
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