क्रंदन
चोटों में दर्द प्रणय का है,
पर जख्म अभी भी भारी है।
ओठों में आश मिलन की है,
पलको मे क्रंदन जारी है।।
चित्राक्ष कहा यूं जाती हो,
छोड़ के मेरी बस्ती को।
चित्रांग कही हर न ले ये,
तेरी इस भूली हस्ती को।।
यादों में तेरे ठिठक उठा था,
पर आज अश्रु की धारी है।
ओठों में आश मिलन की है,
पलको मे क्रंदन जारी है।।
दाही का रूप क्यूं धरे प्रिये,
ऊपर से अश्क बहार किया।
जैसे खुद के बगिया में,
माली ही जघन्य प्रहार किया।।
चाहत है मेरी दीर्घकाल तक,
तुम पर कतरा कतरा वारी है।
ओठों में आश मिलन की है,
पलको मे क्रंदन जारी है।।
जाओ पर यादें ले जाओ,
आँखों में कम सूजन हो।
खुद की दुआ खुदा से है,
चिरआयु तुम्हारा जीवन हो।।
फिर ये विछल उठा है मन,
कि यार तु कितनी प्यारी है।
यादों मे कुछ तो है लिखना,
ये अपनी ही जिम्मेदारी है।
ओठों में आश मिलन की है,
पलको मे क्रंदन जारी है।।
वाह तिवारी जी ,भावविभोर कर दिया आपने
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका महोदय
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