दादी की बैक यात्रा


दादी के बैंक खाते मे २००४ रूपये थे और जब ये बात दादी को पता चली तो उन्होंने कई बार अपने बेटे (यानी मेरे पिता जी) से बोली बेटा इन पैसों को चलो निकलवा दो नहीं तो सरकार काट लेगी। पिताजी ने उन्हें समझाया माताजी वो पैसा नहीं कटेगा उसे खाते मे ही रहने दो कभी किसी बुरी परिस्थिति मे काम आऐगे, किन्तु दादी कहा मानने वाली और जब मैं कर्मभूमि से अपने जन्मभूमि आया तो वही पैसा निकलवाने वाली बात दादी ने हमसे की और हमने कहा उसमें ५०० मेरे होगे। दादी शर्त मंजूर।
हम तो बस ५०० के लालच मे चल दिया हमें क्या पता ये दादी बैंक कहानी इतनी हास्य और ज्ञान युक्त होगी, फिर हम दादी पोते सड़क पर जाकर आटो रिक्शे पर बैठ कर बैंक की ओर चल दिये।
 कुछ मिनटों मे बैँक पहुँचते ही हास्य रस का उगदम होता है। वहा किसी की रखी चेक बुक उठाकर दादी बोली ले लाला ड्रावल भर दे और जब मैं उसे देखा की ये तो किसी चेक बुक है तो उसे मैं बैंक मैनेजर के पास रख कर वहीं पास के काउन्टर से ड्रावल लाया और जब ड्रावल के सारे कालम भर गए तो दादी को अंगूठा लगाने को बोला तो दादी जी बिल्कुल भड़क गई और हस्ताक्षर करने के चक्कर मे ६ ड्रावल नष्ट कर दी। जबकि अंततः अंगूठा ही लगाना पड़ा और अंगूठों मे बाइब्रेट के कारण २ ड्रावल उसमें भी नष्ट ।
उन्होने जब पैड पर अंगूठा लगा रही थी तो हमसे कई बार बोली कि यहा तो मस (श्याही) ही नहीं है और मैं मस का मतलब मच्छर समझ रहा था तो मैने भी हाव- भाव से कहा हा दादी यहा प्रतिदिन साफ़  सफाई की जाती है इसीलिए यहा मस नहीं है। और वहा आसपास के लोग थोड़ा हसे जिसे हमने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। और दादी ये पैड सूखा है इसमें थोड़ा पानी डाल और मैं पैड को गीला करके लाया दादी ने अंगूठा लगाया और अंगूठा लगवाते वक्त़ हमें कुछ पल के लिए थोड़ा अजीब लगा जैसे मैं किसी का गला दवा रहा हूँ किन्तु पैसा निकलने के बाद पुन: उसी तरह हो गया क्योंकि हमें भी ५०० मिलने थे। दादी ने देखा की मैनेजर ने केवल २००० रूपये दिया है तो उन्होने बची चार रूपये के लिए भी जिद करने लगी और मैनेजर को अभिशापित भी कर दी। और वहा से हम दादी के साथ घर की ओर चल दिये। हमारे भी हाथ जब ५०० रूपये तो मानो ऐसे जैसे किसी विरहणी की उसका प्रेमी मिल गया हो।
 बैंक से बाहर आकर फिर घर जाने के लिए आटो रिक्शा रुकवाया वो आटो वाला भी पहचान का था किन्तु हम उसके आवरण से परिचत था उस दिन आचरण से भी परिचत हुआ। कही मार न मिले इसलिए आटो वाले का ज्यादा जिक्र नहीं कर रहा हूँ।
दादी के माधुर्य में आटो वाले की तल्खता का आनंद लेते हुए कुछ मिनटों पर घर आ गये। घर आने पर दादी ने ही हम पर ही आरोप लगा दी उन्होने कहा ये हमें बैक दिखाया ही नहीं पता नहीं कहा लेगया वहा तो एक व्यक्ति था और पता नहीं क्या इस में कागज मे क्या लिख दिया और २००० ही दिया मेरा ४ रूपये भी दिया वो तो हमें बैक भी नहीं दिखाया और चार रूपये न मिलने और बैक न देखने के कारण मेरी दादी अभी तक नराज है।
उनका कहना है कि बैक हरे रंग का डिब्बा जैसे होता है और जब बैक का कान घुमा दो तो वो पैसा देता।
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